Friday, June 4, 2010

Tuesday, June 1, 2010

भौतिकवाद का मार्ग

राजा भोज ने दरबारियों से पूछा कि नष्ट होने वाले की क्या गति होती है? इसका उत्तर कोई दरबारी नहीं दे सका। कवी कालिदास से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस प्रश्न का उत्तर वो कल देंगे।

राजा भोज रोज़ सुबह टहलने जाया करते थे। अगले दिन जब वे टहल कर लौट रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक सन्यासी खड़ा है, और उसके भिक्षा पात्र में मांस के टुकड़े रखे हुए हैं। भोज ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, "अरे भिक्षु! तू सन्यासी होकर मांस का सेवन करता है?"

सन्यासी ने उत्तर दिया," मांस खाने का आनंद बिना शराब के कैसे हो सकता है?"

"क्या शराब भी तुझे अच्छी लगती है?" राजा ने चकित होकर पूछा।

सन्यासी बोला," केवल शराब ही मुझे प्रिय नहीं, वेश्यावृत्ति भी प्यारी है।"

भोज यह सोचकर बहुत दुखी हुए कि उनके राज्य में ऐसे भी सन्यासी हैं जिनकी मांस, शराब और वेश्यावृत्ति में भी रूचि है। उन्होंने पूछा,"अरे वेश्याएं तो धन की इच्छुक होती हैं। तू तो साधू है, तेरे पास तो धन नहीं हो सकता।"

सन्यासी ने जवाब दिया, " में जुआ खेलकर और चोरी करके पैसे इकट्ठे कर लेता हूँ।"

"अरे भीखू तुझे चोरी और जुआ भी प्रिय है?" राजा ने पूछा।

सन्यासी ने कहा," जो व्यक्ति नष्ट होना चाहता हो उसकी और क्या गति हो सकती है?"

राजा भोज समझ गए कि यह कालिदास हैं जो कल की बात का उत्तर दे रहें हैं। तभी कालिदास ने अपने असली रूप में आकर कहा, 'भौतिकवाद का मार्ग ही नष्ट होने का मार्ग है।'