Tuesday, March 2, 2010

yadein

चलो अब यादगारों की
पुरानी कोठरी खोलें
कभी कुछ याद करने को
एक चेहरा हो जाए!

कुछ वर्ष पहले लड़कों की शादी में सेहरा लिखा या लिखवाया जाता था । घर का कोई रिश्तेदार या दोस्त यदि कविता लिखना जानता था तो सेहरा वही लिख देता था नहीं तो बाहर किसी और से लिखवा लिया जाता था। बारात लड़की के दरवाजे पर पहुँचती थी तब इसे पढ़ा जाता था। सेहरे में सब घर के प्रिय रिश्तेदारों और बच्चों के नाम कविता की लाइनों में निहित होते थे कम से कम हमने अपने बचपन में अपने पापा को ऐसा करते देखा है। हम बच्चे थे जब मामाजी की बारात में गए थे। बड़ा मजा आया था। मामीजी के द्वार पर जब बारात का आगमन हुआ तो हमारे नौजवान पापा को बाकायदा एक लकड़ी के बने चौंतरे पर चढ़ाया गया। भीड़ में थोड़ी सी हलचल हुई। सबको छपे हुए पेपर नप्किन की आकृति दे रूमाल बांटे गए । बड़ी उत्सुकता थी सबको। पहली तो यह के किस किस के नाम उसमे कहाँ शामिल किये गए थे दूसरी यह के पापा को उनकी ससुराल में सब खूब पसंद करते थे। उधर लड़की वाले बारातियों का स्वागत कर रहे थे । उन्हें जबरदस्ती कंचे वाली बोतलों में लेमों और सोडावाटर में जलजीरा मिला मिलाकर पिलाने में मस्त थे। हम बच्चों को उनका तीखा स्वाद पसंद नहीं था फिर भी आग्रह था के केवल जरा सा मुह छुआ कर रख दें वहीँ पर । बात बचपन में भी समझ से बाहर थी। ऐसे में मामीजी के घर वालों पर तरस आ रहा था । हमें लगा वो स्वागतकर्ता उनका पैसा खराब कर रहे थे। पापा ने सेहरा गाना शुरू किया तो सबकी निगाहों के साथ हमारी दृष्टि भी वहीँ पहुँच गयी। भूल गए एक अजीब से स्वागत को। पापा की तरफ मुड़ गए। लड़की वालों को तो बस स्वागत करना था वे लगे रहे - पर कुछ कविता प्रेमी भी थे । खड़े होकर सुनने लगे। सेहरे के शब्द इस प्रकार थे-

शुभ परिणय की बेला आई जीवन सफल बनाने को
दो राही मिल चले राह पर अपनी मंजिल पाने कों

कल्पवृक्ष के सुमन गूंथकर लायी सुंदर सुरबाला
पुष्पों की पावन लड़ियों में हुई सुशोभित वरमाला
कली कली में शोभा सौरभ, फूल फूल में प्रेम भरा
वरमाला के पुलक परस से नव नूतन जीवन ..

बरदों से वरदान मिला और पुरखों ने पूर्ण विधान दिया
धरती ने संपत्ति सहारा , नभ ने गौरव गान किया
मित्र जनों ने सद्भावों से मधुर प्रेम संचार किया
नगरवासियों ने मंडप में मंगलमय सन्चार किया।

''इन्द्ररानी' चली ह्रदय के श्रद्धा सुमन चढाने कों ,
'आदीश्वर' के सिर पर सेहरा शोभा शान बढाने कों,

'रतीरामजी ' से तो पूछो फूले नहीं समाते हैं ,
अपनी शोभा इस शोभा पर खुलकर आज मिटाते हैं।
और हर्ष के मोती' बाबू केशोजी' बिखरातें हैं ।
अगर कहीं कंजूसी हों तो 'ताराचंद' आ जाते हैं।

मंगलमय हों मिलन और ये अमर बनें पावन घड़ियाँ
हों 'अशोक' जीवन के सपने कभी न टूटें ये लड़ियाँ
हों 'आनंदप्रकाश' राह में, गीतों से मुखरित गलियाँ
'कान्त ' रहे चन्द्रमा तुम्हारा, सूरज चटकाए कलियाँ ॥

प्रियजन, परिजन, मित्र खड़े हैं पग पर पलक बिछाने कों
'अलका' में हों वास, कीर्ति का 'मंजूरश्मि' बिखराने कों ॥

शुभ परिणय की बेला आई जीवन सफल बनाने को
दो राही मिल चले राह पर अपनी मंजिल पाने को ॥

4 comments:

  1. oh dear Manju you have openend 'Yadoun ke jharokhe.It is wonderful to read 'Sehra'now a days they may spend afortune but these meaningful lyrics are cherished forever.Congrats for your great effort! Rashmi

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  2. bada sundar laga. kuch aur likh daliye-alka

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  3. excellent..........keep it up;

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  4. A first time reader of Smritiyan .... thoroughly enjoyed it..

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