Sunday, April 18, 2010

नयी पौध

मम्मी कुछ समय से अकेली बाज़ार कम ही जाती हैं । अक्सर हम साथ साथ ही जाते हैं। रविवार का दिन था। घर में कुछ ठीक करने के लिए एक मकेनिक को ग्यारह बजे का समय दिया था। इसलिए हम में से एक को तो घर में ही रहना था। मम्मी जल्दी तैयार हो गयीं। सुबह के दस बजे थे। उन्हें बाज़ार से कुछ विशेष चीज़ लानी थी। आजकल दुकानें की तरह जल्दी नहीं खुलतीं। बोलीं --" मैं बाज़ार जा रही हूँ, तू घर में ही रह, क्या पता मकेनिक कब आ जाए।"

मैंने कहा- " दोपहर को दोनों साथ चलेंगे। अभी दुकान भी न खुली होगी।"

बोलीं- " नहीं ! दोपहर को नहीं। बहुत गर्मी हो जाती है। धूप में देखने में भी परशानी होती है। मैं अभी जाऊंगी ! सुबह -सुबह काम हो जाता है तो अच्छा रहता है।"

मैंने कहा-" मम्मी अभी दूकान नहीं खुली होगी। आजकल लोग देरी से घर से निकलते हैं। बेकार तुम्हें वापस आना पड़ेगा।"

पर उन्हें तो उसी समय निकलना था सो निकल गयीं। एक घंटा हो गया न तो मेकेनिक के दर्शन हुए और न ही मम्मी लौटीं। चिंता होने लगी। अन्दर ही अन्दर मुझे यह भी आभास था कि दुकान नहीं खुली होगी। ग्यारह बजे थे। दरवाजे पर घंटी बजी। सामने मम्मी खड़ी थीं। मैंने पूछा -" बड़ी देर लग गयी ! हो गया काम?"

बोलीं--"कहाँ? वहां दूकानदार का इंतज़ार कर रही थी की सामने की दुकान से एक लड़का निकला। उसने मुझसे पूछा कि मैं किसका इंतज़ार कर रही थी। मैंने उसे बताया तो वह मुझे अपनी दूकान में ले गया। मुझे कुर्सी दी, ए सी आन किया। बोला-"आंटी, आप आराम से बैठो। वह दुकान जरा देरी से ही खुलती है। वो लेडी अकेली है , घर का सब काम ख़तम करके दुकान पर आती हैं।"

मैंने कहा भी कि मैं बाद में आ जाऊंगी पर वो बोला कि बैठ जाइए, अब आप कहाँ जाकर वापस आएंगी? बैठी रहिये। बोलीं-" आजकल ऐसे बच्चे कहाँ मिलते हैं जो बड़े लोगों का इतना आदर करते हैं।

मैंने पुछा-" एक घंटे तक क्या बात कर रहे थे?"

बोलीं- " उसने मुझसे पूछा कि मैं कहाँ रहती हूँ और भी बहुत सारी बातें कीं । फिर हंसकर बोलीं कि उसने पूछा की वो झाडिया आपकी ही बिल्डिंग में रहता है क्या? तो मैंने कहा -" कौन? नील?" बोला- "हाँ, वही।" कहने लगा -" बड़ी बातें करता है। सुना है, आपकी बिल्डिंग टूटकर नयी बनाने वाले हैं।" मैंने कहा- " हमारी उम्र के लोग घर का सामान लादे-लादे कहाँ भागे फिरेंगे। आदमी घर लेता है आराम से रहने के लिए । ऐसे बिल्डिंग टूट-टूटकर नयी बनती रहीं तो क्या होगा? " उसने मेरे साथ सहानुभूति दिखाई। बातों-बातों में उसने मुझे यह भी बताया कि वह पास वाली बेला -बिल्डिंग में ही रहता है । बड़ा ही मजेदार लड़का लगा मुझे तो।

"उसके पास ग्राहक नहीं आ रहे थे क्या, जो तुमसे इतनी बातें करता जा रहा था."-मैंने पूछा।

मम्मी उसकी तरफदारी करते हुए बोलीं-"उसके सैल्समैन थे न ग्राहक अटेंड करने को। वो तो मालिक है वहां का। वरना तो आज कल के लोग अपनी ही उम्र के लोगों से बात करना चाहते हैं। ऐसे वंडर बच्चे आजकल कहाँ होते हैं। यह बात अपनी जगह सच है कि बाहर निकलते हैं तो मन बहलता है, तरह तरह के लोग मिलते हैं .अच्छा लगता है।"

"चलो, भले ही काम न हुआ हो। मुझे अच्छा लगा कि तुम्हे एक यंग दोस्त तो मिल गया."-मैंने मजाक किया।

"हाँ, सोचती हूँ , पूरी नयी पौध ऐसी हो जाए तो संसार सुखों की खान न हो जाए?"

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कृपया त्रुटियों पर ध्यान न दें। छोटी और बड़ी मात्राएँ अपने आप इस स्क्रिप्ट में गलत आती हैं .--मंजू

6 comments:

  1. हाँ तो क्या बात करते रहे वो तो बताओ, तु्म्हारा स्वागत है हिन्दी ब्लोगजगत की दुनिया में। याद है ऐसा ही स्वागत तुमने मेरा किया था आज से सत्ताइस सा्ल पहले और मैं आज तक उस स्ने्ह में रसाभोर हूँ। अच्छा लग रहा है तुम्हें यहां देखना। वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दो वो तकलीफ़ देता है

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  2. क्या बातें कर रहे थे ये तो मुझे भी नहीं पता - सोचा बिना कुछ कहे ही निकल जाऊं लेकिन नहीं.

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  3. thanku anita. sattaees saal pahle ki baat tumhe yaad hai-tum ho hee aisee ki tumhara aise hi swagat karne ka dil hota hai.-manju.

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  4. is baar blog poora nahin hua ,iae poora karo please it will be interesting

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  5. swaagat...honge parivartan sansaar ka niyam hai
    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  6. bahut achcha laga nayi paudh ke jitne log ye padh sakein to achcha ;

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