Saturday, April 24, 2010

आलसी कुत्ता

मेरे घर के ऊपर वाले घर में मिस दिवा रहती हैं। अभी नयी नयी ही शिफ्ट हुई हैं इस मकान में। अभी कुछ दिन पहले ही आईं थीं मिलने। हम लोगों की बातों का सिलसिला ऐसा चला कि जल्दी ही हम आपस में घुल मिल गयीं। चीज़ों का आदान प्रदान भी होने लगा। बस, कुछ लोग अच्छे लगने लगते हैं और ऐसा हो जाता है जैसे वर्षों से जानते हों। मेरे यहाँ पहली बार आईं, मेरे कुत्ते स्नूपी को देखा तो अचंभित हुईं। कारण था उसका जाकर बड़े प्यार से उनके पाँव पर चढ़ चढ़ कर उन्हें प्यार करना ।
बोलीं-" इसने मुझे कभी देखा नहीं और यह तो ऐसे प्यार कर रहा है जैसे पता नहीं कितनी बार आपके घर में आ चुकी हूँ।"
" हाँ, यह अजीब प्राणी है। केवल प्यार करना जानता है। कोकस स्पनिएल है। बस बच्चे की तरह है। ग्यारह साल का हो गया है। अगर इसपर मैं गुस्सा करती हूँ तो गुर्रात्ता है। में शैतानी करती हूँ, इसे चिढाती हूँ तो भागता है मेरे पीछे। बेचारे को रास्ता नहीं दीखाई देता, एक वायरस के कारन अपनी आँखों की रोशनी खो बैठा है। जगह जगह टक्कर खाता है पर दौड़ने से बाज नहीं आता। पहले तो बगीचे में जाकर खूब कुलांचे भरता था।" मैं जरा भावुक हो उठी .
बोलीं-" बड़ा प्यारा है।" वह उसके ऊपर हाथ फेरने लगीं। फिर क्या था इतने लाड में आया कि उनकी सिल्क की साडी के चारों ओर घूम घूम कर, पल्ले के एक हिस्से पर आँखें बंद करके लेट गया।
"इसे सिल्क बहुत अच्छी लगती है। अब सो जाएगा।" मैंने उन्हें बताया।
वो हंसने लगीं। बाद में कुछ दुखी होकर बोलीं -" मेरे यहाँ भी कुत्ता है। नाम है 'शेरा'। बूढा हो चला है। बड़ा काम करने भी बहार नहीं जाकर देता । "
" अरे, कुछ नहीं। यह भी ऐसी कोशिश करता है । उठकर नहीं देता। पर बड़ी मुश्किल से ही सही। कहीं-खींचकर उठा ही देते हैं। कुत्ते तो आखिर तक भागा- दौड़ी करते हैं। ऐसा मत कहो ।"- मैंने कहा।
उन्हें पता था कि मैं होम्योपेथी जानती हूँ
बोलीं-" अच्छा! कोई दवाई बताइए उसके लिए ।"
" हाँ, जरूर देख कर बताऊंगी."
कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा। कभी किसी बहाने से वह आ जातीं और कभी मैं चली जाती। पर 'शेरा' कभी दिखाई नहीं दिया। क्यूंकि न शेरा सामने आया न उसकी कोई बात हुई। वे भी भूल जाती थीं।
हमारे बच्चे बचपन में कुत्तों के साथ खेलकर अपना शौक पूरा करके उनकी जवाबदारी हम पर डालकर अपनी अपनी पढाई करने शहर से दूर चले गए थे। हमें भी इनके साथ रहना अच्छा लगता । अकेलेपन को दूर करने का एक साधन बन गए थे। इतने समय से साथ राहत रहते रहते प्यार होना स्वाभाविक भी था । उनका दुःख में दुखी होना और उनकी मस्ती में मनोरंजन करना . जिम्मेदारी जो होती है सो तो होती ही है । एक बार स्नूपी को किसी के यहाँ छोड़कर माँ के यहाँ चली गयी थी तो उसे कहीं से वायरस लग गया था।
दिवा नीचे आती तो जरूर अपने कुत्ते की बिमारी का जिक्र करती। पर जब main ऊपर जाती तो वह भूल जाती थी 'शेरा' के दर्शन कराने। एक दिन मैं उसके लिए एक होम्योपथी दवा लेकर केवल शेरा के लिए दिवा के घर गयी। दोनों पति-पत्नी मिले। संयोग से उस दिन बड़े यत्न से दो नौकर उसका गंद साफ़ करके उसे स्नान करा रहे थे। दिवा कुछ बिस्किट कूट रही थी। मैंने पूछा -"भाई, क्या चल रहा है। बिस्किट तो खुद ही इतने खस्ता होते हैं। इन्हें पीस क्यों रही हो?"
" दीदी, शेरा के लिए पीस रही हूँ। इसमें तो जरा भी हिम्मत नहीं। चूरा करके इसके बर्तन में दाल दूँगी तो खा लेगा नहीं तो दोपहर तक भूखा रहेगा।"- उसने लाचारी के साथ उसकी लाचारी का बखान करते हुए कहा।"देखो ना , कितना गंद फैलाया इसने । बदबू फैला दी सारे घर में।"
" भाई, मैं तो इसके लिए दवाई लायी थी। पर लगता है इसकी कोई दवाई नहीं."-मैंने कहा .
" क्यों, दीदी? होम्योपथी देने में हर्ज ही क्या है , खिला दूँगी। लाइए, दीजिये।"
मैंने कहा -" इन्ही बिस्किट के बीच में डाल दो। पर, तुम तो इसकी बीमारी बढ़ा रहे हो। सब कैसी सेवा में लगे हो। सेवा करनी चाहिए, पर केवल तब जब जरूरत हो।" -शेरा ने आलसी आँखों से मेरी तरफ देखा .
" अरे, इसने तो आँख खोल दीं , कमाल है।" सुनील (दिवा के पति) ने होठों पर ऊँगली रख ली।
मेरी जोरों से हंसी निकल गयी। वे मेरी तरफ प्रश्नभरी निगाहों से देखने लगे। मैंने कहा-" इसे बिस्किट पीस कर खिलाने कि सलाह किसने दी? "
"क्यों, आप ऐसा क्यों कह रही हैं? "
" तुम इसे बिगाड़ रहे भगवान् ने इतने बड़े बड़े दांत दिए हैं इसे। उन्हें इस्तेमाल नहीं करेगा तो टूट जाएंगे।भाई, इतना मोटा हो रहा है यह, बैठे बैठे इस तरह पूजोगे और खाना पीस पीस कर दोगे तो इसे क्या चाहिए। " मैंने उसकी तरफ तर्जनी करते हुए कहा।
बोली-" नहीं-नहीं, यह सचमुच चल फिर नहीं सकता। इसे बाय का दर्द रहता है। इसकी आवाज़ सुनी है कभी आपने ? बस मरने लायक हो गया है ।शायद हमें इसकी सेवा करना हमारे भाग्य में लिखा था। "
" तुम मुझे पहले बता देतीं तो में बाय कि दवा देखती। डॉक्टर के पास ले गए थे क्या?"
नहीं दीदी, ये कहते हैं कि क्यों फिजूल में खर्च करना। जाने वाला तो है ही अब।
UNHONE YEH BAAT KAHI TO MERI NAZAR एक-एक उनके घर में रखे बेशकीमती सामान पर चली गयी। मैं संघ्याशून्य- सी उनकी तरफ देखने लगी।
मुझे 'शेरा' पर बड़ा तरस आया। कुछ नहीं कह पायी ।" - बस, सीधी शेरा के नज़दीक गयी और उसके सामने बैठ कर उससे हंसकर बोली-" क्यों मियाँ! बड़े मजे आ रहे हैं। उठकर थोडा चल लिया करो।" उसने मेरी तरफ देखा और थोडा भौंका। जैसे कह रहा हो कि तुम्हे नहीं मालूम मुझे कैसा दर्द होता है चलने में?।
मैं तो उसके लिए एक्टिव होने कि दवा लायी थी। मैंने उसे अपने हाथ से ही खिला दी। चार-पांच मीठी गोलियां खाकर ही वह जैसे धन्य हो गया। गर्दन इधर-udhar kee. phir baith gaya .
दोनों पति-पत्नी मेरा बच्चा-अवतार निहार रहे थे। मैंने बात आगे बढाते हुए कहा-" जरा एक डंडी लाना। अभी इलाज करती हूँ इसका। यह हड्डी चबा-चबा कर खाने वाला जीव पिसा हुआ भोजन कर रहा है। बड़ी अजीब सी बात है।" - मैंने फिर उसके साथ पंगा लिया।वह गुर्राया।
मैंने कहा -" इसे मेरे साथ भेजो, दो दिन में ठीक न कर दिया तो।" पास ही एक पतली सी झाड़ू की सींक मुझे मिल गयी। मैंने उसके पीछे एक लगाई। तौलिये से chootkar वह लड़ाई की मुद्रा में मुझपर जोरों से भोंकने लगा। मैंने उसे एक और लगाया, मैं पहले से ही तैयार थी। उधर एक कुत्ते की आवाज़ सुनकर नीचे से स्नूपी भी जोर-जोर से भोंकने लगा। और शेरा उसका जवाब देने में लग गया। मैं भागकर उनके ड्राइंग रूम में बंद हो गयी। दिवा धीरे से अन्दर आई , मुझसे लिपट गयी- " थैंक्स दी!"
वह दिन और आज का दिन , आलसी कुत्ता अब रोज सुबह - शाम घूमने जाता है । खाना अब पूरी तरह ठीक से khaataa है और स्नूपी के भौंकने का बराबर भौंक -भौंक कर जवाब भी देता है.
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3 comments:

  1. इतना आलसी कि पता नहीं कहां छुप गया, दिख ही नही रहा

    प्रणाम

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  2. ek engineer yaani science background ka hote hue bhi aap bahut achcha likh lete hein. badi khushi ki baat hai. -manjuranijain

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